सूत्र :सम्प्रदानात् II2/2/26
सूत्र संख्या :26
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : सम्प्रदान का अर्थ देना हैं, किन्तु यहां पर देने का तात्पर्य शब्द के द्वारा गुरु का शिष्य को ज्ञान देना है। दान में वह वस्तु दी जाती है जो देने से पहले विद्यमान हो। गुरु जब शिष्य को विद्यादान देता हैं, तब विद्या कि सम्पत्ति पहले से उसके पास मौजूद होती है और वह सम्पत्ति शब्दमय हैं। विद्यादान से पहले शब्द गुरु के ज्ञान में मौजूद थे, और विद्यादान के पश्चात् वे शिष्य के ज्ञान में उपस्थित हो जाते है। इस युक्ति से शब्द का उच्चारण से पूर्व और पश्चात् भी होना सिद्ध है, अतः उसको उत्पत्तिधर्मवान् नहीं कहा जा सकता और जब शब्द अनुत्पत्तिधर्मवान् है तो उसके नित्य होने में सन्देह क्या हैं ? इसका उत्तर:-