सूत्र :नाणुनित्यत्वात् II2/2/25
सूत्र संख्या :25
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यह हेतु कि स्पर्शवान् अनित्य और स्पर्शरहित नित्य होता है, व्यभिचारी हैं, स्पर्शरहित कर्म का अनित्य होना दिखला चुके हैं, अब स्पर्शवान् अणु का नित्य होना दिखलाते है। परमाणु स्पर्शवान् हैं, परन्तु वह नित्य है।
व्याख्या :
प्रश्न -परमाणु का स्पर्शवान् होना परमाणु के अप्रत्यक्ष होने से सिद्ध नहीं होता।
उत्तर - जो गुण कारण में होते हैं, वे ही कार्य में भी आते हैं, इसलिए पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु जिनका स्पर्श हो सकता हैं, उनके परमाणु भी स्पर्शरहित नहीं हो सकते। अब वादी शब्द के नित्य होने में और हेतु देता है।