सूत्र :न कर्मानि-त्यत्वात् II2/2/24
सूत्र संख्या :24
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : शब्द को केवल स्पर्शरहित होने से नित्य मानना ठीक नहीं, क्योंकि कर्म भी स्पर्शरहित है किन्तु उत्पत्ति धर्म वाला होने से अनित्य हैं, इसी प्रकार स्पर्शरहित शब्द भी उत्पत्तिमान् होने से अनित्य हैं। अब इसके विरुद्ध स्पर्शवान् का नित्य होना सिद्ध करते हैं:-