सूत्र :अनुपलम्भात्मकत्वादनुपलब्धेरहेतुः II2/2/22
सूत्र संख्या :22
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिस पदार्थ की उपलब्धि होती है, उसकी की सत्ता मानी जाती है और जिसकी किसी प्रकार उपलब्धि नहीं हो सके उसका अभाव माना जाता है, यह सिद्धान्त है। ज्ञान के अभाव को अनुपलब्धि कहते हैं, इसलिए उसका भाव नहीं हो सकता। अतः आवरण के होने का ज्ञान होना चाहिए, जब तक आवरण के भाव का ज्ञान न हो जावे, तब तक आवरण की सत्ता सिद्ध नहीं हो सकती और यह जो हेतु दिया गया है कि अनुपलब्धि अर्थात् किसी वस्तु के प्रत्यक्ष ज्ञान न होने से उसकी सत्ता का होना सिद्ध हैं, यह भ्रान्तियुक्त हैं, क्योंकि अभाव का हेतु अभाव नहीं हो सकता।
व्याख्या :
प्रश्न -इस हेतु में त्रुटि हैं ?
उत्तर -किसी पदार्थ के भाव अर्थात् सत्ता को सिद्ध करने के लिये प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती। इसलिए आवरण की सत्ता के लिए प्रमाण की आवश्यकता है। भाव के लिए प्रमाण न होने से अभाव स्वंयमेव सिद्ध हो जाता है। अब शब्द के नित्य होने में वादी और हेतु देता हैं:-