सूत्र :अनुपलम्भादप्यनुपलब्धिसद्भाववन्नावरणानुपपत्तिरनुपलम्भात् II2/2/21
सूत्र संख्या :21
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : आवरण के प्रत्यक्ष न होने से जो अनुपलब्धि अर्थात् ज्ञान का न होना माना जावे और अनुपलब्धि का अभाव न माना जावे तो आवरक के न होने पर आवरण का भाव मानना चाहिए, जिससे शब्द छिप जाता है और जब बोलने वाला बोलने की चेष्टा करता है तो वह आवरण दूर हो जाता है, तब शब्द प्रकट होता है, वास्तव मे शब्द सदा विद्यमान रहता है।
व्याख्या :
प्रश्न -अनुपलब्धि किसे कहते हैं ?
उत्तर - किसी वस्तु के प्रत्यक्ष न होने को।
प्रश्न - अनुपलब्धि का अभाव क्या हैं ?
उत्तर - उसका प्रत्यक्ष होना। इसका उत्तर सूत्रकार देते हैं:-