सूत्र :तत्प्रामाण्ये वा नार्थापत्त्यप्रामाण्यम् II2/2/6
सूत्र संख्या :6
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : व्यभिचार होने पर भी कहीं उपयोगी होने से निषेध को प्रमाण मान लिया जाये तो अर्थांपत्ति को भी यथावसर उपयोगी होने से प्रमाण मानना पड़ेगा और यह हो नहीं सकता कि सव्यभिचार होने से निषेध को तो प्रमाण मान लिया जाये और अर्थापत्ति को प्रमाण न माना जाये। इसलिए इस युक्ति से भी अर्थापत्ति का प्रमाण होना सिद्ध है। अब अभाव के प्रमाणत्व में शंका करते हैं: