सूत्र :अर्थापत्तिरप्रमा-णमनैकान्तिकत्वात् II2/2/3
सूत्र संख्या :3
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अर्थापत्ति को प्रमाण मानना ठीक नहीं, क्योंकि उसमें व्यभिचार दोष है, जब यह कहते हैं कि बादल के न होने से वर्षा नहीं होती, तब अर्थापत्ति से यह सिद्ध होता है कि बादल के होने से अवश्य वर्षा होगी, परन्तु प्रायः अवसरों पर बादल के होने पर भी वर्षा नहीं होती, यही व्यभिचार दोष हैं। इसलिए अर्थापत्ति अप्रमाण हैं। इसका उत्तर सूत्रकार देते हैं: