सूत्र :असत्यर्थे नाभाव इति चेन्नान्यलक्षणोपपत्तेः II2/2/9
सूत्र संख्या :9
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जब कोई वस्तु पहले विद्यमान हो और पीछे न रहे तो उसका अभाव कहा जाता हैं, क्योंकि जिसका भाव पहले न हो, उसका अभाव हो ही नहीं सकता, वस्तुतः भाव का नाश ही अभाव है।
व्याख्या :
प्रश्न -क्या जो वस्तु विद्यमान होकर नाश न हो जाये, उसका अभाव नहीं माना जायेगा ?
उत्तर - वस्तु के होने पर उसके नाम और लक्षण होते है, जिसका कोई नाम या लक्षण ही नहीं, ऐसी वस्तु नहीं हो सकती, उसका भाव और अभाव दोनों नहीं हो सकते।
प्रश्न -खरगोश के सींग और आकाश के फूल कभी नहीं हुए और न ही उनका नाश हुआ है, किन्तु सब लोग उनका अभाव मानते हैं ?
उत्तर - सींग और फूल दोनों पदार्थ संसार में विद्यमान हैं, इनके नाम और लक्षण भी विद्यमान हैं, उनको खरगोश और आकाश के साथ मिलाकर वहां उनका अभाव सिद्ध करते है। यदि फूल और सींग कोई वस्तु न होते तो उनका भाव और अभाव दोनों नहीं हो सकते थे। जो लक्षण सींग के हैं, वे अन्यत्र देखे जाते है। खरगोश के सिर पर न होने से वहां उनका अभाव सिद्ध किया जाता है, इस पर वादी कहता हैं: