सूत्र :प्रागुत्पत्तेरभावोपपत्तेश्च II2/2/12
सूत्र संख्या :12
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अभाव दो प्रकार का है (1) किसी वस्तु की उत्पत्ति से पहले उसका अभाव होता है, इसको प्रागभाव कहते है । (2) किसी वस्तु के नाश हो जाने पर उसका अभाव हो जाता हैं इसी को प्रध्वंसाभाव कहते हैं। जहां किसी पदार्थ में लक्षण के अभाव से ज्ञान होता है, वह प्रागभाव है, प्रध्वंसाभाव नहीं।
व्याख्या :
प्रश्न -क्या तुम अन्योन्याभाव और अत्यन्ताभाव को नहीं मानते ?
उत्तर -अन्योन्याभाव तो इन्हीं दोनों में आ जाता हैं, अत्यन्ताभाव की कोई आवश्यकता नहीं, क्योंकि अत्यन्ताभाव किसी पदार्थ का हो नहीं सकता, कारण यह कि पदार्थ के विद्यमान होने से उसके लक्षण और नाम होते हैं, अब जिस वस्तु का अत्यन्ताभाव मानते हो, उसके नाम और लक्षण नहीं हो सकते और जब नाम और लक्षण ही नहीं हैं तो अभाव किसका कहा जाएगा ? इसलिए दो ही प्रकार का अभाव मानना ठीक है।
अब शब्द की विशेष परीक्षा आरम्भ करते है। शब्द नित्य है व अनित्य ? यह प्रश्न करते हैं: