सूत्र :विधिविहितस्यानुवचनमनुवादः II2/1/64
सूत्र संख्या :64
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जो बात एक बार कहदी गई, उसका पुनः कहना अनुवचन अनुवाद कहलाता है। अनुवाद दो प्रकार का है (1) शब्दानुवाद दूसरा अर्थानुवाद। जहां विधि का अनुवाद किया जाये वह शब्दानुवाद है और जहां विहित का अनुवाद हो, उसे अर्थनुवाद कहते हैं।
व्याख्या :
जिस प्रकार वेद में तीन प्रकार के वाकय हैं, ऐसे ही लोक में भी तीन प्रकार के वाक्य देखने में आते हैं। जैसे कोई स्वामी अपने भृत्य से कहे कि सात्विक करके भोजन बनाओ’’ यह विधि वाक्य है। यदि कहा जाये कि साहित्य भोजन से आयु, तेज, स्वास्थ्य और स्मरण शक्ति बढ़ती है’’ तो यह वाक्य अर्थवाद कहलाएगा। यदि स्वामी भृत्य से कहे कि ‘‘पकाओ, पकाओ’’ अर्थात् शीघ्र पकाओ, और सब काम छोड़कर पहले यह काम करो, यह अनुवाद है। जहां किसी शब्द या वाक्य के बार-बार कहने से कोई अर्थ निकलता है, वह अनुवाद है और जहां निरर्थक बार-बार उन्हीं शब्दों या वाक्यों का उच्चारण किया जाता हैं, उसको पुनरूक्ति कहते हैं, बस यही इन दोनों में में भेद है, कि वादी फिर आक्षेप करता हैं-