सूत्र :न सामयिकत्वा-च्छब्दार्थसम्प्रत्ययस्य II2/1/54
सूत्र संख्या :54
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : शब्द और अर्थ का सम्बन्ध स्वाभाविक नहीं, किन्तु देश कालानुसार कल्पित है अर्थात् जहां जिस शब्द के जो अर्थ लेने चाहिएं, वहां वही लिए जाते हैं। एक भाषा में एक शब्द में एक शब्द का कुछ और अर्थ है, दूसरी भाषा में उसका अर्थ बिल्कुल उसके विपरीत है। इससे विदित होता है कि शब्द से जो ज्ञान उत्पन्न होता हैं, वह भिन्न-भिन्न दशाओं में भिन्न-भिन्न प्रकार का होगा। जैसे तीर्थ शब्द पढ़ने वालों की परिभाषा में गुरू का वाचक है, वहीं पुराणों में जल स्थलमयादि स्थानों का वाचक हैं, बाम मार्गियों की बोलचाल में वहीं मद्य का पर्याय है। इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि शब्द और अथ्ज्र्ञ का सम्बन्ध केवल औपचारिक है, जो मनुष्य इस नियत परिभाषा से अनभिज्ञ है, वह बार-बार उस शब्द के सुनने से भी उसके अर्थ को नहीं जान सकता। इस पर और युक्ति देते हैं-