सूत्र :जातिविशेषे चानियमात् II2/1/55
सूत्र संख्या :55
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जो कि अति विशेष में भी इसका कोई नियम नहीं है कि अमुक शब्द अमुक अर्थ का ही वाचक होगा। सूर्यं का प्रकाश सब जातियों और व्यक्तियों प्रकृत या कालकृत कोई भेद नहीं, इस प्रकार शब्द समस्त जातियों में तो क्या एक जाति में भी समान रूप से व्यापक नहीं है। भाषा प्रवत्र्तकों ने जो परिभाषाएं नियत कर दी हैं, वे अपनी-अपनी सीमा तक प्रचलित है, उनके बाहर उनको कोई जानता भी नहीं। अतएव शब्द अर्थ का सम्बन्ध एक देशी तथा कल्पित होने से नित्य नहीं हो सकता और जब नित्य नहीं है, तो वह केवल आप्तोपदेश होने से प्रामाणिक हो सकता हैं। अब वादी शब्द की अप्रमाणिक्ता में और भी हेतु देता हैं-