सूत्र :प्रधानाविवेकादन्याविवेकस्य तद्धाने हानम् II1/57
सूत्र संख्या :57
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जीव में प्रधान अर्थात् प्रकृति के अविवेक अर्थात् पदार्थ ज्ञान के न होने से और कारण आदि से पदार्थों वा अज्ञान होता है। आशय यह है कि बन्धन का कारण जीव की अल्पज्ञता है, क्योंकि जीव अपनी स्वाभाविक अल्पज्ञता से प्रकृति का विवेक नही रखता, जिससे प्राकृतिक पदार्थों में मिथ्या ज्ञान उत्पन्न होता है, और मिथ्या ज्ञान से राग-द्वेष से प्रवृत्ति उत्पन्न होती है, और उससे बंधन अर्थात् तीन प्रकार का दुःख उत्पन्न होता है, और जिस समय प्रकृति का मिथ्या ज्ञान नष्ट हो जाता है, तब प्रकृति के पदार्थों का अविवेक दूर होकर दुःख रूप बन्धन से छूट जाता है।