सूत्र :नाजः सम्बन्धो धर्मिग्राहकमानबाधात् II5/98
सूत्र संख्या :98
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जबकि संज्ञा-संज्ञी दोनों ही अनित्य सिद्ध हुए तो उनका सम्बन्ध कैसे नित्य हो सकता है? क्योंकि जिन प्रमाणों से सिद्ध होता है उनके ऐसा कहना नही बन सकता कि संबंधी चाहे अनत्य हो पर सम्बन्ध को नित्य मानना चाहिये। उत्तर यह है कि यह बात किसी प्रकार ठीक नहीं हो सकती कि सम्बन्धी तो अनित्य हो और सम्बन्ध नित्य हो।
प्रश्न- गुण और गुणी का नित्य समवाय सम्बन्ध शास्त्रों से सुना जाता है और वास्त में दोनों अनत्य हैं, यह कैसे ठीक हो सकता है?