सूत्र :न सम्बन्धनित्यतोभयानित्यत्वात् II5/97
सूत्र संख्या :97
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : घटादि पदार्थें का सम्बन्ध नित्य नहीं है, क्योंकि संज्ञा और संज्ञि ये दोनों अनित्य हैं। तात्पर्य यह है कि जो घड़ा घट नाम से पुकारा जाता है उस घड़े के नाश होते ही उसकी संज्ञा का भी नाश हो जाता है क्योंकि उस घड़े के टूटने पर उसकी फिर घड़ा नहीं कह सकते हैं किन्तु कपाल कह सकते हैं। जबकि फिर दूसरा घड़ा नजर आया तो उसकी दूसरी घट संज्ञा हुई। दूसरी घट संज्ञा के होने में समता कहां रही जब समता ही नहीं है तो प्रत्यभिज्ञा कैसी? क्योंकि वह प्रत्यभिज्ञा उसी पदार्थ में होती है जिसको कभी पहले देखा हो और जो घड़ा पहले देखा था उसका तो नाश हो गया, जिसको अब देख रहे हैं वह दूसरा है, जो वह पहिले देखा हुआ नहीं हो सकता इसी से प्रत्यभिज्ञा भी नहीं हो सकती।
प्रश्न- सम्बन्धी अनित्य हो परन्तु सम्बन्ध तो नित्य ही मानना चाहिये?