सूत्र :निजशक्त्य-भिव्यक्तिर्वा वैशिष्ट्यात्तदुपलब्धेः II5/95
सूत्र संख्या :95
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : घटादि पदार्थें की शक्ति का प्रकाश होना प्रत्यभिज्ञा में हेतु नहीं हो सकता, क्योंकि यह बात तो अर्थापत्ति से सिद्ध है। यदि सब घड़ों में समान शक्ति न होती तो उसका नाम क्यों होता? इस वास्ते समान आकृति और समान शक्ति प्रत्यभिज्ञा का हेतु नहीं हो सकती, किन्तु वहीं पदार्थ जो पहिले देखा है दूसरी बार देखने से प्रत्यभिज्ञा का हेतु हो सकता है, इस बात से सिद्ध हो गया कि सामान्य पदार्थ अनित्य होने पर भी स्थिर है इसी से प्रत्यभिज्ञा भी होती है।
प्रश्न- एक घोड़े में जो संज्ञा संज्ञी सम्बन्ध है वही सम्बन्ध दुसरे घड़े में भी है फिर उसमें प्रत्यभिज्ञा क्यों नहीं होती?