सूत्र :न रूपनिबन्धनात्प्रत्यक्षनियमः II5/89
सूत्र संख्या :89
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : रूप के बिना प्रत्यक्ष नहीं होता, यह कोई नियम नहीं है, क्योंकि जो बाहर की वस्तु है उसके देखने के वास्ते अवश्यमेव इन्द्रियों से योग की आवश्यकता रहती है, लेकिन जो ज्ञान से जाना जाता है उसको रूपवान्होने की कोई आवश्यकता नहीं है और नास्तिक लोग जो यह बात कहते हैं कि साकार पदार्थ का ही प्रत्यक्ष होता है, निराकार का नही होता, यह कथन ठीक नहीं क्योंकि जब नेत्र आदि इन्द्रियों में दोष हो जाता है तब सामने रक्खे हुए घट पटादि पदार्थें का भी प्रत्यक्ष नहीं होता। इससे साबित होता है कि पदार्थ का स्वरूप होना प्रत्यक्ष होने में नियम नहीं, किन्तु इन्द्रियों की स्वच्छता हेतु है।
प्रश्न- आपने जो कार्यरूप कहकर अनित्य सिद्ध किया तो क्या अणु कोई वस्तु आपके मत में है या नहीं? इस पर आचार्य अपना मत्र दिखाते हैं।