सूत्र :न निर्भागत्वं कार्यत्वात् II5/88
सूत्र संख्या :88
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जबकि अणु कार्य हैं तो कारण रहित कैसे हो सकते हैं? क्योंकि जो कार्य उसका कारण भी अवश्य ही कोई न कोई होगा।
प्रश्न- जबकि प्रकृति और पुरूष दोनों ही आकार रहित हैं तो उनका प्रत्यक्ष कैसे हो सकता है, क्योंकि जब तक रूप न होगा तब तक प्रत्यक्ष नहीं हो सकता?