सूत्र :षोडशादिष्वप्येवम् II5/86
सूत्र संख्या :86
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : गौतमादिकों ने तो सोलह पदार्थ माने हैं और जिन-जिन महार्षियों ने पच्चीस पदार्थं माने हैं उनके जान लेने से भी मुक्ति नही हो सकतीं, क्योंकि पदार्थ तो असंख्य हैं।
प्रश्न- वैशेषिकादि कों का मत क्यों दूषित माना गया है क्योंकि वह वैशधिकादिक पृथ्वी आदि के अणुओं को नित्य मानते हैं।