सूत्र :दुःखनिवृत्तेर्गौणः II5/67
सूत्र संख्या :67
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : मुक्ति होने पर दुःख दूर हो जाते हैं, ऐसा कहना गौण है। यद्यपि मुक्ति होने पर दुःख दूर जाते हैं परन्तु अल्पज्ञता तो जीव में उस समय भी बनी रहती है, इसलिए फिर भी दुःख उत्पन्न होने का भय बना ही रहता है, इस कारण जीव सर्वदा आनन्द में नहीं रहता है अतः जीव को आनन्द स्वरूप नही कह सकते। आनन्दस्वरूप तो ईश्वर को ही कह सकते हैं।
प्रश्न- जब कि आप की मुक्ति ऐसी है कि जिसके होने पर भी फिर कुछ दिनों के बाद दुःख उत्पन्न होने की सम्भावना बनी रहती है तो एकसी मुक्ति से बद्ध रहना ही अच्छा है।