सूत्र :न प्रत्यभिज्ञाबाधात् II1/35
सूत्र संख्या :35
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : लोक में कोई भी पदार्थ (क्षणिक) अर्थात् एक क्षण रहने वाला नही, क्योकि यह ज्ञान के सर्वथा विरूद्ध है, क्योंकि प्रत्येक मनुष्य यह कहता हुआ सुनाई देता है कि जिसको मैने देखा उसको स्पर्श किया। दृष्टान्त यह है कि जैसे यदि एक घोड़ा मोल लिया जावे तो क्षणिकवादी के मत में परीक्षा करके मोल लेना असम्भव है, क्योकि जिस क्षण घोड़े को देखा था तब और घोड़ा था, जिस क्षण में हाथ लगाया तब और था दुबारा देखा तब और हुआ, इस कारण कोई हो ही नही सकता। अतएव जिसके लिए दृष्टान्त न हो वह ठीक नही इसलिए बन्धनादि क्षणिक नही वरन स्थिर है, और प्रमाण देते है -