सूत्र :न द्वयो-रेककालायोगादुपकार्योपकारकभावः II1/31
सूत्र संख्या :31
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जब तुम्हारा बन्धन और अदृष्ट एक काल में उत्पन्न होते है तो उनमें कत्र्ता और कर्म नही हो सकता। क्योकि तुम्हारी दष्टि में संसार प्रत्येक क्षण में बदलता है तो एक स्थिर आत्मा के न होने से दूसरे आत्मा के आदृष्ट से दूसरे आत्मा का बन्धन रूप दोष होगा।