सूत्र :गुणादीनां च नात्यन्तबाधः II5/26
सूत्र संख्या :26
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : गुण जो सत्वादिक अर्थात् सत्व, रज, तम, उनके धर्मं जो सुखादिक और उनके कार्य जो महदादिक हैं, उनका स्वरूप से बाध नहीं है, अर्थात् स्वरूप से नाश नहीं होता, किन्तु संसर्गं से बाध होता है, जैसे- आग के संसर्गं से जल की स्वाभाविक शीतलता का बाध होता है, परन्तु उसके स्परूप का बाध नहीं होता, इसी तरह प्रकृति के गुणों का भी वाध्य नही होता।