सूत्र :स्वोपकारादधिष्ठानं लोकवत् II5/3
सूत्र संख्या :3
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जैसे कि संसार में दीखता हैं, पुरूष अपने उपकार के वास्ते कर्मों का फल देने वाला एक भिन्न नियुक्त करता है, इसी तरह ईश्वर भी सबके कर्म फल देने के वास्ते एक अधिष्ठान है।