DARSHAN
दर्शन शास्त्र : सांख्य दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :न भूतियोगेऽपि कृतकृत्यतोपास्यसिद्धिवदुपास्य- सिद्धिवत् II4/32
सूत्र संख्या :32

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : ऊहादि विभूतियों के मिलने पर भी कृतकृत्यता नहीं होती, क्योंकि जैसा उपास्य (जिसकी उपासना की जाती है) होगा वैसी ही उपासक को सिद्धि प्राप्त होगी अर्थात् जो धनवान् की उपासना की जाती है, तो धन मिलता है, और दरिद्र की उपासना करने से कुछ भी नहीं मिलता। इसी प्रकार ऊह आदि सिद्धियां नाश होने वाली है, इस वास्ते उनकी प्राप्ति से कृतकृत्यता नहीं हो सकती। ‘सिद्धवत्, सिद्धिवत्’ ऐसा जो दुबारा कहना है, सो अध्याय की समाप्ति का जताने वाला है। इति सांख्यदर्शंने चतुर्थोऽध्यायः समाप्तः