सूत्र :तद्योगेऽपि न नित्यमुक्तः II5/7
सूत्र संख्या :7
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : तुम्हारा यह कथन सत्य नहीं, क्योंकि ईश्वर नित्य मुक्त न रहेगा अर्थात् जैसे जीव प्रकृति के संगी होने से अनित्य मुक्त हैं, इसी तरह ईश्वर को भी मानना पड़ेगा। और जो लोग इस तरह ईश्वर को मानते हैं, उनका ईश्वर भी संसार के जीवों के साथ अनित्य मुक्त होगा। यदि ऐसा कहा जाये कि ईश्वर से संसार बना है अर्थात् ईश्वर उपादान कारण है, सो भी सत्य नहीं।