सूत्र :लौकि-केश्वरवदितरथा II5/4
सूत्र संख्या :4
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि ईश्वर को सब कर्मों का फल देने वाला न माना जाय तो लौकिक ईश्वर की तरह भिन्न-भिन्न कर्मों के फल देने वाले भिन्न भिन्न ईश्वर मानने पड़ेगे जैसे-संसार में जज, कलक्टर इत्यादिक भिन्न-भिन्न कर्मों के फल देने वाले भिन्न-भिन्न ईश्वर हैं लेकिन इन लौकिक ईश्वरों में भ्रम, प्रसाद इत्यादि दोष दीखते हैं। यही दोष उस ईश्वर में दीख पड़ेगे। इस चसस्ते ऐसा मानना योग्य नहीं कि कर्म का फल ईश्वर नहीं देता।