सूत्र :पारिभाषिको वा II5/5
सूत्र संख्या :5
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : कर्म का फल अपने आप होता है, ऐसा मानने से एक द्वेष और भी प्राप्त होता है, वह दोष यह है कि ईश्वर केवल नाम मात्र ही रह जायेगा, क्योंकि कर्मों का फल तो आप ही हो जाता है, फिर ईश्वर की क्या आवश्यकता रही। और ईश्वर के नाममात्र ही रह जाने में यह भी दोष होगा कि वर्तमान संसार की सिद्धि भी न हो सकेगी।