सूत्र :दोषदर्शनादुभयोः II4/28
सूत्र संख्या :28
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : प्रकृति और प्रकृति के कार्यों के दोष इन दोनों के देखने से रागों की शान्ति होती है और जिसका चित्त राग द्वेष इत्यादिकों से युक्त है, उसको उपदेश फल का देन वाला नहीं होता।