सूत्र :न भोगाद्रागशान्तिर्मुनिवत् II4/27
सूत्र संख्या :27
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अर्थ- भोगों को पूर्णंरूप से भोगने से भी राग की शान्ति नहीं होती, जैसे-मौमरि नाम वाले मुनि ने भोगों को खूब अच्छी तरह भोगा, लेकिन उससे कुछ भी शान्ति न हुई। मृत्यु के समय उस महात्मा ने ऐसा कहा भी था किः-आमृत्युतो नैव मनोरथानामन्तोऽन्ति विज्ञातमिदं मयाऽद्य मनोरथासक्तिपरस्य चित्तं न जायते वै परमार्थसंगि।।
अर्थ- आज मुझको इस बात का पूरा-पूरा निश्चय हो गया कि मृत्यु तक मनोरथों का अन्त नहीं है और जो चित्त मनोरथों में लगा हुआ है उसमें विज्ञान का उदय कभी नहीं होता।