सूत्र :पिशाचवदन्यार्थोपदेशेऽपि II4/2
सूत्र संख्या :2
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : एक के वास्ते जो उपदेश किया जाता है उससे दूसरा भी मुक्त हो जाता है, जैसा-एक समय श्रीकृष्ण जी अर्जुन को उपदेश कर रहे थे, लेकिन पिशाच भी सुन रहा था यह पिशाच उस उपदेश को सुनकर उसके अनष्ठान द्वारा मुक्ति को प्राप्त हो गया।