सूत्र :श्रुतिश्च II3/80
सूत्र संख्या :80
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जबकि जिज्ञासु पुरूष को सत्य के जानने की अभिज्ञाषा हो, उस समय सनित्पाणि अर्थात् पुष्पादिक हाथ में लेकर श्रेत्रिय, ब्रह्यनिष्ठ गुरू की शरण ले, फिर उस महात्मा गुरू को चाहिए कि ऐसे शिष्य को धोखे में न डाले, और वह उपदेश करना चाहिए। जिस कारण से वह शिष्य सत्यमार्ग को प्राप्त हो जाय।
प्रश्न- ब्रह्यनिष्ठ गुरू की ही शरण क्यों ले और भी तो बहुतेरे होते हैं?