सूत्र :छिन्नहस्तवद्वा II4/7
सूत्र संख्या :7
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जैसे किसी मनुष्य का हाथ कटकर गिर पड़ता है, फिर वह कटे हुए हाथ से किसी तरह का संबंध नहीं रखता, इसी तरह विवेक प्राप्ति होने पर जब विषय वासना नष्ट हो जाती हैं, तब मुमुक्ष फिर उन विषय-वासनाओं से कुछ संबंध नहीं रखता है।