सूत्र :विवेकान्निःशेषदुःखनिवृत्तौ कृतकृत्यता नेतरान्नेतरात् II3/84
सूत्र संख्या :84
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : विवेक ही से सब दुःख दूर होते हैं, तब जीव कृतकृत्य होता है, दूसरे से नहीं होता, नहीं होता। पुनरूक्ति अर्थात् ‘नेतरात्’ इसका दुबारा कहना पक्ष पुष्टि और अयाय की समाप्ति के वास्ते है।
।। इति सांख्यदर्शने तृतीयोऽध्यायः समाप्तः।।