सूत्र :इतरथान्धपरम्परा II3/81
सूत्र संख्या :81
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि ज्ञानवान ब्रह्यनिष्ठ गुरू से ज्ञान न लिया जावे, तो क्या मूर्खों से लिया जायेगा, फिर तो अन्ध परम्परा गिनी जायेगी, जैसे-एक अन्धा कुयें में गिरा तो सब हो अन्धे कुयें में गिर पड़े, इसी प्रकार मूर्ख की शरण लेने से सब मूर्ख रह जाते हैं।
प्रश्न- अब ज्ञान से कर्म नाश हो जाते हैं, तो फिर शरीर क्यों रहता है और उसकी जीवान्मुक्त संज्ञा कैसे होती है?