सूत्र :संस्कार-लेशतस्तत्सिद्धिः II3/83
सूत्र संख्या :83
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : रागादिको के संस्कार का भी लेश रहता है, उसी के सहारे से उपभोग की सिद्धि जीवन्मुक्त हो जाती है, वास्तविक राग जीवन्मुक्त को नहीं रहते। यह सब जीवनमुक्त के विषय में कहा। अब बिना देह की मुक्ति के वास्ते अपना परम सिद्धान्त कहकर अध्याय को समाप्त करते हैं।