सूत्र :श्येनवत्सुखदुःखी त्यागवियोगाभ्याम् II4/5
सूत्र संख्या :5
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : संसार का यह नियम है कि जब-जब द्रव्य-प्राप्ति होती है तब-तब तो आनन्द, और ज बवह द्रव्य चला जाता है तब ही दुःख होता है। दृष्टांत-कोई श्येन (बाज) किसी पक्षी का मांस लिये चला जाता था, उसी समय किसी व्याध ने पकड़ लिया और उससे मांस छीन लिया, तो वह अत्यन्त दुःखी होने लगा। यदि आप उस मांस को त्याग देता तो क्यों दुःख भोगता? इस कारण आप ही विषय वासना इत्यादि का त्याग कर देना चाहिए।