सूत्र :असाधनानुचिन्तनं बन्धाय भरतवत् II4/8
सूत्र संख्या :8
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जो मोक्ष का साधन नहीं है लेकिन धर्मं गिनकर साधन वर्णन कर दिया तो उसका जो विचार है, वह केवल बन्धन का ही कारण होगा न कि मोक्ष का। दृष्टांत-जैसे राजार्षि भरत यद्यपि मोक्ष का इच्छा करने वाले थे लेकिन किसी ने कोई अनाथ हिरण का बच्चा महात्मा को पालने के लिए दे दिया, और उस अनाथ हिरण के बच्चे के पालन-पोषण में महात्मा के विवेक प्राप्ति का समय नष्ट हो गया और मुक्ति न हुई। यद्यपि अनाथ का पालन राजा का धर्म था तथापि पालने के विचार में महात्मा से विवेक साधन न हो सका, इस वास्ते बन का हेतु हो गया। इसी वास्ते कहते हैं कि धर्म कोई और वस्तु है और विवेक साधन कुछ और वस्तु हैं।