सूत्र :बाधितानुवृत्त्या मध्यविवे-कतोऽप्युपभोगः II3/77
सूत्र संख्या :77
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिसको विवेक साक्षात्कार हो भी गया है, उसको भी कर्मों का भोग भोगना होगा ही, क्योंकि यद्यपि कर्म एक बार वाधित भी कर दिये जाते हैं तथापि उनकी अनुवृत्ति होती है। प्रारव्ध आदि संज्ञा वाले कर्म सर्वथा विनाश को प्राप्त नहीं होते।