सूत्र :न सांसिद्धिकं चैतन्यं प्रत्येकादृष्टेः II3/20
सूत्र संख्या :20
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जब पृथ्वी आदि भूतों को भिन्न-भिन्न करते हैं, तब उनमें चेतन शक्ति नहीं दीखती, अतः इससे सिद्ध होता है कि देह स्वभाव से चैतन्य नहीं है, किन्तु दूसरे चैतन्य के मेल से चैतन्य शक्ति को धारना करती है।