सूत्र :मदशक्ति-वच्चेत्प्रत्येकपरिदृष्टे सांहत्ये तदुद्भवः II3/22
सूत्र संख्या :22
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि मदिरा की शक्ति के समान माना जाय जैसे- अनेक पदाथा्र्रें के मिलने से मादकता-शक्ति उत्पन्न हो जाती है इस ही तरह पांच भूतों के मिलने से शरीर में चैतन्य शक्ति उत्पन्न हो जाती है ऐसा कहना भी योग्य नही है। क्योंकि मदिर में जो मादक शक्ति है, वह शक्ति उन पदार्थों में भी है, जिनसे मदिरा बनी है, यदि यह कहा जाए कि एक भूत में थोड़ी चेतनता है और सब मिलकर बड़ी चेतनता हो जाती है, ऐसा कहना भी असत्य है, क्योंकि बहुत-सी चैतन्य शक्तियों की कल्पना करने में गौरव हो जाएगा, इस कारण एक ही चैतन्य शक्ति का मानना योग्य है, और पहले तो इस बात को कह आये हैं कि लिंग शरीर की सृष्टि पुरूष के वास्ते है, लिंग शरीर का शरीर में संचार भी पुरूष के वास्ते है, उसका तात्पर्य अब कहते हैं, जो अत्यन्त पुरूषार्थ का हेतु है।