सूत्र :द्वयोः प्रधानं मनो लोकवद्भृत्यवर्गेषु II2/40
सूत्र संख्या :40
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : बाह्य और आभ्यन्तर इन बारह प्रकार के भेद वाली इन्द्रियों में मन ही प्रधान है, क्योंकि संसार में यही बात दीखती है जैसे राजा के बहुत से नौकर-चाकर होते हैं, तथापि उन सबके बीच में एक मन्त्री ही होता है। छोटे-छोटे नौकर और जमींदार आदि सैकड़ों होते हैं, इसी तरह केवल मन प्रधान है और सब इन्द्रियां गौण हैं, और भी मन की प्रधानता को इन तीन सूत्रों से पुष्टि पहुंचती है।