सूत्र :कार्यतस्तत्सिद्धेः II2/6
सूत्र संख्या :6
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : कार्यों के देखते ही से प्रकृति के वास्त कारणत्व की सिद्धि हो सकती है, क्योंकि वह सृष्टिरूपी कार्य प्रकृति के सिवाय और किसका हो सकता है? यदि पुरूष का कहें तो पुरूष में परिणामित्व की प्राप्ति आती है, और यदि प्रकृति का न कहें तो किसका-यह सन्देह पैदा होता है? इस कारण प्रकृति ही को वास्तव में कारणत्व है और जो सृष्टि के अनित्यत्व में स्वप्न का दृष्टान्य देते हैं, सो भी ठीक नहीं, क्योंकि स्वप्न भी अपनी सवस्था में सत्य ही होता है। इस कारण सृष्टि नित्य है, और उसका कारण भी नित्य है।
प्रश्न- प्रकृति अपने मोक्ष के वास्ते सृष्टि करने में क्यों तैयार होती है?