सूत्र :अन्ययोगेऽपि तत्सिद्धिर्नाञ्जस्येनायोदाहवत् II2/8
सूत्र संख्या :8
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : प्रकृति के साथ पुरूष का योग होने पर भी पुरूष वास्तव में सृष्टि का कारण नहीं हो सकता, यह प्रत्यक्ष ही है जैसे-लोहे और अग्नि के संयोग होने पर लोहा अग्नि नहीं हो सकता। यद्यपि इस दृष्टांत से दोनों में परिणामित्व हो सकता है, क्योंकि अग्नि और लोहे ने अपनी पहली अवस्था को छोड़ दिया है, तो भी एक ही परिणामी होना चाहिए, क्योंकि दोनों का परिणामा होने से गौरव होता है, और जो दोनों ही परिणामी माना जाए तो स्फटिकमणि में लाल या पीले रेग की परछांई पड़ने से जो उसमें लाली वा पीलापन आता है वो वास्तविक मानना पड़ेगा, लेकिन वैसा माना नहीं जाता?
प्रश्न- सृष्टि का मुख्य निमित्तकारण क्या है?