सूत्र :आत्मार्थत्वा-त्सृष्टेर्नैषामात्मार्थ आरम्भः II2/11
सूत्र संख्या :11
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : इन महदादिकों का कारणत्व पुरूष के मोक्ष के वास्ते है, किन्तु अपने वास्ते नहीं है, क्योंकि महादादि विनाशी है अर्थात् नाश वाले हैं।
प्रश्न- यदि महादादिकों के कारणत्व पराए वास्ते हैं, तो प्रकृति के वास्ते होने चाहिए। पुरूष के वास्ते क्यों हैं?
उत्तर- महादादिक प्रकृति के ही कार्य हैं, इस कारण ‘पर’ शब्द से पुरूष का ही ग्रहण होगा।
प्रश्न-दिशा और काल की सृष्टि किस प्रकार से हुई?