सूत्र :दिक्कालावाकाशादिभ्यः II2/12
सूत्र संख्या :12
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : दिशा और काल यह दोनों आकाश से उत्पन्न हुए, इस कारण यह दोनों आकाश के समान नित्य हैं, अर्थात् आकाश में जो व्यापकता है, वह व्यापकता इन दोनों में भी है, इस कारण यह दोनों नित्य हैं और जो खण्ड दिशा और काल हैं, सो उपाधियों के मेल से आकाश से उत्पन्न होते है, वे अनित्य होते हैं। अब बुद्धि का स्वरूप और धर्मं दिखाते हैं।