सूत्र :न कर्मणान्यधर्मत्वादतिप्रसक्तेश्च II1/16
सूत्र संख्या :16
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : वेदविहित या निषिद्ध कर्मों से जीव का बन्धन रूपी दुःख उत्पन्न नही होता, क्योकि कर्म करना भी शरीर व चित्त का धर्म है। द्वितीय कर्म शरीर से होगा और शरीर कर्म के फल से होता है, तो अनवस्था दोष उपस्थित हो जायेगा। तीसरे यदि शरीर का कर्म आत्मा के बन्धन का हेतु माना जावे तो बंधन में हुए जीव के कर्म में मुक्त-जीव का बन्धन होना सम्भव हो सकता है, अतएव कर्म द्वारा बन्धन उत्पन्न नही होता।