सूत्र :श-क्त्युद्भवानुद्भवाभ्यां नाशक्योपदेशः II1/11
सूत्र संख्या :11
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : उपर्युक्त उदाहरण स्वाभाविक गुण के अत्यन्ताभाव का सर्वथा अयुक्त व अप्रामाणिक है, क्योकि यह तो शक्ति के गुप्त व प्रकट होने का उदाहरण है, क्योकि यदि रजक के धोने से पुनः यह वस्त्र श्वेत न हो जाता तब यह ठीक होता। इसी प्रकार जला हुआ बीज अनेक औषधियों के मेल से ठीक हो जाता है, अतएव यह कथन ठीक नही कि स्वाभाविक गुण का भी नाश हो सकता है।