सूत्र :प्रकृतिनिबन्धनाच्चेन्न तस्या अपि पारतन्त्र्यम् II1/18
सूत्र संख्या :18
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि बन्धन का कारण प्रकृति मानो तो प्रकृति स्वयं ही स्वतन्त्र नही, तो परतन्त्र प्रकृति किसी को किस प्रकार बांध सकती है, क्योकि जब तक प्रकृति का संयोग न हो तब तक वह किसी को बांध ही नही सकती और संयोग दूसरे के अधिकार में है।
प्रश्न- क्या ब्रह्य की उपाधि से जीव रूप होकर अपने आप बन्ध गया है?