सूत्र :विजातीयद्वैतापत्तिश्च II1/22
सूत्र संख्या :22
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अद्वैतवादी ब्रह्य को सजातीय अर्थात् बराबर जाति वाले, विजातीय विरूद्ध जाति वाले, स्वगत अपने भाग इत्यादि के भेद से रहित मानते है और यहां अविद्या के वस्तु मानने से विजाति अर्थात् दूसरी जाति का पदार्थ उपस्थित होने से अद्वैत सिद्धान्त का खण्डन हो गया।
प्रश्न- हम अविद्या को वस्तु और अवस्तु दोनों से पृथक् अनिर्वचनीय पदार्थ मानते है, जैसे-